Saturday, May 27, 2017

वो बेचते हैं (Wo Bechte hain)




वो ज़मीर बेचते हैं ,
वो ईमान बेचते हैं ,
इंसानियत के दुश्मन हैं, 
मौत का सामान बेचते हैं

सत्ता की हवस ने
इतना गिरा दिया ,
खुद को कहते हैं मुस्लमान,
और माह ए रमजान बेचते हैं

बड़ी मुश्किलों से रौशन,
किया था अपने दर को,
फैज़, चिरागों के घर,
वो तूफ़ान बेचते हैं

vo zameer bechate hain ,
vo eemaan bechate hain ,
insaaniyat ke dushman hain,
maut ka saamaan bechate hain

satta kee havas ne
itana gira diya ,
khud ko kahate hain muslamaan,
aur maah e ramajaan bechate hain

badee mushkilon se raushan,
kiya tha apane dar ko,
phaiz, chiraagon ke ghar,
vo toofaan bechate hain

Wednesday, November 16, 2016



 मेरा  हिन्दुस्तान  (A Poem by Faiz M. Nafe)


नत्थू की औलादों ने ,
ऐसी आग लगाई है ,
राम-रहीम अब दुश्मन हैं , ...
खून का प्यासा भाई है


क़ानून के रखवाले, जो थे ,
वही आज, कसाई है

देश के लाल , अब द्रोही हैं ,
और द्रोही घर- जमाई है

इन्साफ हो रहा नाम पूछ कर
तू अख़लाक़ है या कन्हाई है

Secular सब Sickcular हो गए
अब गाँधी भी हरजाई है

झूट फरेब का , गरम बाजार ,
प्रेस , सत्ता की, लूगाई है

लूट मची है , शोर मैचा है ,
कमर तोड़ , महंगाई है

भूक से लोग, खुदकुशी  कर रहे ,
अरब-पतियों की, खूब कमाई है

खुद उड़ा रहे Pa-की बिरयानी ,
खा, गोली रहा , सिपाही है

दलित ओ मुस्लिम, को मार रहे ,
और काटवा रहे ख़ुद , गाय है

गिरा है भारत , उठा है भारत
कटा है भारत , जुड़ा है भारत ,
ज़ुल्म और ज़ालिम के आगे ,
कभी नहीं झुका है भारत

वह दिन फिर से आएगा ,
फिर से खेत लहराए गा

फिर ईद दिवाली होगी साथ
फिर होगा , हांथों में हाँथ

फिर गाँधी नेहरू, ज़िंदा होगा ,
फिर आज़ाद, हर बन्दा होगा .

फिर से Akhlaq खेले गा होली ,
राम-रहीम, फिर होंगे हमजोली

यह मेरा देश, ये Faiz की जान ,
यही है असली हिन्दुस्तान




Nathu ki Auladon ne ,
Aysi aag lagai hai,
Ram Rahim ab dushman hain,
Khoon ka pyasa, bhai hai.
Desh ke lal, ab drohi hain ,
Aur Drohi ghar jamai hain.
Kannon ke jo rakhwale the
ab wahi bada , Kasai hai
Insaaf ho raha naam puch ker ,
Tu Akhlak hai, ya Kanhai hai.
Secular ab Sickular ho gaye ,
Ab Gandhi bhi harjaye hai,
Jhoot fareb ka gram bazar,
Satta ki, Press , lugai hai.
Loot machi hai, shoor macha hai,
Kamar torh , Mahngai hai,
bhook se log, Khud kushi ker rahe
Arabpatiyon ki, khub kamai hai,
Kud Uda rahe Pa-ki biryani,
kha, Goli raha, sipahi hai,
Dalit muslim ko mar rahe,
khud kat rahe woh gay hai,
bahut ho gaya, bahut sah liya
bahut sun liya , bahut kah liya
Ek aur Jang-e-azadi,
phir ladni hogi,
Angrez to gaye
bari ab inki hogi
Gira hai bharat, Utha hai bharat.
Kata hai bharat , Juda hai bharat,
Zulm aur Zalim ke aage,
Khabhi nahi ,Jhuka hai bharat.
woh din phir se aayega,
phir se khet lahrayen ge,
Phir Eid diwali hoge sath,
phir hooga hanthon me hanth,
Phir se Gandhi Zinda hoga,
phir azad har banda hoga,
Phir Akhlaq khelega holi,
Phir Ram-Rahim honge Humjoli,
Phir Gandhi-Nehru Zinda hoga,
Phir Azaad, har banda hoga
Yeh mera Desh, Yeh Faiz ki Jaan ,
Yehi hai Asali Hindustaan.

Thursday, March 24, 2016

इन्सानियत की पुकार

इंसानियत की पुकार 

हिन्दू, तो कहीं मुस्लमान, नहीं जीने देते ,
यहूद, तो कहीं नसारा, नहीं जीने देते ,
जाये तो आदमी,जाए किधर ,
ग़ुंचों को , बाग़बान नहीं खिलने देते। 

सियासत ने मोहम्मद (sa) व  मसीह (as) को नहीं छोड़ा ,
राम (Shri) को नहीं छोड़ा , मूसा (as) को नहीं छोड़ा,
शातिर रहा आदमी, हर ज़माने में ,
अना में डूबा फिरौन ने भगवन  को नहीं छोड़ा।

मंदिर ओ मस्जिद , गिरजा बना लिए कितने ,
झूमर ग़लीचे जुगनुओं से, सजा लिए कितने ,
ईमान व  हिदायत, दफ़ना के  उसी फर्श में ,
इंसान और बस्तियाँ  जला  दिए कितने। 

रख लेने से नाम राम ,
या फिर, इस्लाम अपना ,
कोई शरायत पूरी नहीं होती ,
जब तक न बसे मोहब्बत दिल में ,
कोई इबादत , पूरी नहीं होती। 

जंग का म्यार, आज , बहुत निचे उतर आया ,
रहनुमा ही, कहीं क़त्ल तो कहीं धमाका कर आया,
बच्चे , बूढ़े , औरतें या हो जवान ,
ख़ौफ़  में जीता, हर इंसान नज़र आया। 

मक़तूल की मय्यत में सारा शहर आया ,
हुक्मरान आये , हर बशर आया ,
हांथों में  लिए, फूल और शमा,
सब की आँखों में, खून उभर  आया ,

फिर बुझा दिए, शहर और बस्तियां, सारे 
जब आसमान  में उड़ता, उनका क़हर  आया ,
मिली राहत और सुकून , तब जा के उनको ,
जब चीथड़े, बेगुनाहों के, हवाओं में लहर आया,

आतंकी भी ख़ूनी,
हुकूमतें भी ख़ूनी ,
किसी का फरेब ख़िलाफ़त ,
तो किसी का जमहूरियत
दोनों ने किया गुलिस्तां बरबाद ,
दोनों हैं, बराबर के, मुजरिम आज। 

यहाँ ज़ाहिरी और है , बातिन और ,
चल रहा है अब, दज्जलियत का दौर। 
खेल है, ताक़त और मुनाफों  का ,
नशा है,  कुफ्र और गुनाहों का। 

कहीं शयातीन , तो
कहीं पैसों का है राज ,
बेगुनाहों की लाशों पे तिजारत ,
तो कहीं, सियासत हो रही आज ,

वह लोग तो ज़ालिम हैं,
तुम भी सितमगर हो फैज़,
खड़े खड़े देखते रहे ,
लुटती इन्सानियत की लाज। 
 

Tuesday, March 15, 2016

मेरा ख़ून


मेरा ख़ून 

शक है आज उन्हें हमारे  खून पे ,
शक है हमारे  मोहब्बत ओ जुनून  पे ,
भूल गए वह सदयों का हमारा  प्यार ,
जो कर रहे हैं, हमारी वफ़ाओं से इंकार।

आज भी, हमारा ख़ून सही  है ,
यह खून भी वही है , यह कौम भी वही है। 

हम ने, न सिर्फ, हिन्द को बनाया ,
इसे  ख़ून से सिंन्चा , 
नाज़ों से पाला ,
दुल्हन की तरह  सजाया।
 
कभी अपने गिरेबान में भी झांको ,
मिल जाएँ गे  कई, जयचंद,
भले ही, तुम्हे गुमान नहीं होता ,

चन्द अफज़ल गुरु से,
कोई कौम बदनाम नहीं होता ,

हम आज भी टीपू और अशफ़ाक़ हैं,
हम आज भी हमीद  और आज़ाद हैं।

हम कल भी कलाम थे ,
हम आज भी कलाम  हैं।

हमे हमारे हाल से न तौलो ,
हमारा माज़ी भी बुलंद था ,
और हमारा, इंशाअल्लाह,
मुस्तक़बिल भी बुलंद होगा।   


सेयासत की हवा, कुछ , यूँ बदल गई ,

मक्कारों की झूट ओ  साज़िश चल गई ,
अश्फ़ाक के शब्द मुस्लिम हो गए,
बिस्मिल की कविता हिंदू हो गई।

चले थे, कभी जानिब ए मंज़िल साथ साथ ,
कफ़्ले बट्टते गए, अख़लाक़ मरता गया।

कोई, पंजाबी हैं, तमिल और गुजराती भी ,
कोई ब्राह्मण हैं , तो कोई बनया और चमार भी ,
कोई सिख हैं , कोई हिंदू और मुसलमान भी ,

बढ़ी मुश्किल से मिलता , अब यहाँ इंसान भी।   
उजड़ दिया लोभियों ने, सुन्दर  चमन अपना  ,
बाँट लिया , कटोरों में  , हिंदुस्तान भी।
खोल ली सब ने अपनी झूठ की दुकानें ,
मार दी इंसानियत, मार दिए  भगवान भी।

क्यों न रोये  फ़ैज़,  सब ज़िंदा लाश हैं,
खूब फल फूल रहा यहाँ अब, कब्रिस्तान भी, अस्मसान भी। 



Saturday, March 12, 2016

उदास मंजिले

 
 
 उदास मंज़िलें    ( Udas Manzilen )
 

मुसीबतों पे मुझे कुछ यूँ प्यार आया ,
जैसे सदयों बाद , कोई रूठा यार आया ,
किस्मत भी न रोक सकी, मुस्कराहट को,
जब हमने उसे कुछ यूँ गले लगाया 
 
फैज़, वक़्त के साथ सब है आनी जानी ,
रह जायेगा फ़कत, के क्या कमाया, क्या गवाया 
 
 

Musibatoon pe mujhe kuch yun pyaar aaya,

Jayse sadyo baad koi rutha yaar aaya,
Kismat bhi na rok saki muskurahat ko,
Jab humne usse , yun gaale lagaya.
Faiz ,waqt ke sath ,sab hai aani jaani,
Rah Jaye ga fakat, ke kya kamaya, kya gawaya......

Wednesday, February 2, 2011

मेरा रंग , Mera Rang


वक़्त ही जाने मेरा रंग क्या होगा ,
दूध सा सफ़ेद या रात सा स्याह होगा  .

Waqt hi jaane mera raang kya hooga,
Doodh sa saafed ya raat sa sayah hooga.

उम्र गुज़र दी पूरी  , इश्क ए फानी में ,
यूँ लगता है दो चार दिन ही जिया होगा .

Umar guzar di puri, ishqee-e-fani me,
Yun lagta hai do char din hi jiya hooga.

मौत की लगी आहट , तो बैठे कफ्फारा करने  को ,
कहाँ से लाऊँ हिसाब , गुनाह क्या क्या किया होगा .

Maut ki lagi aahat, to bhaithe kaffara kerne ko,
Kahan se laoon, hisab, gunah kya kya kiya hooga

गरीबी भी आजमाईश , अमीरी भी आजमाईश ,
काश सब बेच कर, कुछ नेकी ही खरीद लिया होता . 

Garibi bhi aazmayish, amiri bhi azmayish,
Kash sab beach ker kuch naki hi kharid liya hota.

कभी खींचे है रिश्ता , तो कभी फ़र्ज़ अपनी ओर,
दिमाग की छोढ़ , काश दिल की सुन लिया होता .

Kabi khinche hai rishta , to kabhi farz apni oor
Dimag ki choorh , kash dil ki sun liya hoota.

सभी बैठे हैं खफा , के उनकी नहीं सुनता मै ,
किस किस की सुनू , काश कान ही नहीं दिया होता .

Sabhi, baithe hai khafa ,ke unki nahi sunta mai,
Kiss kiss ki soonu, kash kaan hi na diya hoota,

खरीद लिया वोह सब , जो कब्र में ना जाये साथ ,
या इलाही , काश , कुछ सब्र से भी काम लिया होता .

Karid laye woh sab , jo kabr me na jaye sath,
Ya elahi , kaash, kuch sabrr se bhi kaam liya hoota.

बढ़ी कठिन है डगर,    फैज़ , यहाँ चलना मुश्किल ,
आसां हो जाता  सफ़र , अगर किताब (कोरान  ) से चल लिया होता .

Barhi kathin hai dagar faiz , yahan chalna mushkil,
Aasan ho jata yeh safar, aagar kitab (koran ) se  chal liya hoota

Faiz


Saturday, January 15, 2011

Tu mari Zindagi hai !



तुझे देख के जी लेता हूँ मैं ,
ज़िन्दगी का ज़हर पी लेता हूँ मैं


भरी दूप में चांदनी है तू ,
मेरे  उज्ढ़े घर की ज़िन्दगी है  तू  . 


तेरी मासूम हंसी , गुण्चों की तरह ,
तेरी प्यारी शरारत , तितलियों की तरह .


उसके हांथों के अस्पर्श में , जादू भरा,
उस की सांसों में जैसे  है  खुसबू  बसा  .


उस का चेहरा , सरापा , अल्लाह का  नूर ,
उस की बातें हैं प्यारी और बढ़ी  मशकूक .


उस के रोने में भी है भरी  मौसीकी  ,
उस के होने से जिंदा मेरी ज़िन्दगी .


रौनक है घर की, तू  मेरी जान है .
तेरी ही दम से , मेरे अरमान हैं ,


तेरी धढ़क्नो से धढ़कता , है मेरा जिगर ,
तुझे देख , भूला ,  हर ग़म ओ फिकर .

एक रोज़ देख तुझे ,   आया यह ख्याल ,
मेरा भी जब था तेरे जेसा ही हाल .

मै भी कभी तेरे जैसा ही था ,
मेरे माँ-बाप के लिए भी सब  ऐसा ही था .

वोह भी मुझे यूँ करते थे प्यार ,
मैं भी था उनके ज़िन्दगी का बहार .

मुझ से भी थे उनके अरमान वाबिस्ता ,
सपने , उमीदें , कुछ फराएज ऐ रिश्ता .

यूँ गुज़रता रहा वक़्त , फिर आई जवानी ,
वोह सपने उमीदें सब बन गए पानी ,

डूबा फरयेज़ जैसे , कागज़ की कश्ती ,
हावी हुई मुझ पे दुन्या की मस्ती .

दिया मै भूला वोह  प्यार और रिश्ते ,
रह गए बंकि चंद यादें और किस्से .

छोढ़ के वह दामन  और आँचल तेरा ,
बना मैं हुक्म ए इलाही का मुनकिर बढ़ा .

बुढ़ापे की लाठी था  बनना  तेरा ,
आँखों का नूर , मुसत्कबिल था मेरा .

छोढ़ आया मै , सब कुछ वहीँ दूर , परे ,
दुन्या की आय्शो आराइश के लिए .

बने गा सांप, गले का ,  यही तब
जाएँ गे कब्र ओ दोज़ख में जब .

माँ बाप तब भी करें गे दुआ ,
माफ़ कर दे इलाही , अब बहुत, हुआ .

जन्नत भी लगे गा , काँटा भरा ,
जब तक न होगा ,  उनका बेटा रिहा .

खैर अल्लाह की रहमत , अल्लाह का  फैसला ,
अल्लाह ही सब  जाने , वोह हाकिम बढ़ा .

इस दुन्या का भी फेल  , जैसे को तैसा ,
मुझ को भी मिले गा , हर ज़ख्म ,  वैसा  .


एक दिन ,तू भी, मुझे छोढ़ , चली जाये गी ,
अपनी दुन्या में कहीं तू खो जाये गी ,


मै भी रह जाऊं गा , तढ़पता पढ़ा
अपने गलतियों पे नादिम रोता हूआ  .


दुआ है मेरी, ए रब , ऐसी सूरत तू कर दे ,
हम सब रहें साथ , पूरी हर ज़रुरत तू कर दे .


ना जाये कोई , ना तढ़पे कोई ,

ना रोये  कोई , ना रुलाये कोई .


रहे सब साथ , खुश ओ खुर्रम ,
हमेशा हमेशा , हर दिन, हर दम .

माँ-बाप और बच्चे  , के हों हर फ़र्ज़ पुरे ,
ना मैं जियूं आधा , ना माँ-बाप अधूरे .  

रहें सब साथ,  फैज़ , दुआ है , है सपना ,
फिर,  हर रात दिवाली  , है हर दिन ईद,  अपना.
                                                                                                                                 

Faiz
 ( इन्शाह अल्लाह ! )